आधी-अधूरी-अजनबी-अनजान,
बिखरी-बिखरी, अब मेरी पहचान,
बदरंग, बैरंग, वो कमरे, ये दालान,
बदरंग, बैरंग, वो कमरे, ये दालान,
तुम्हारा जाना क्या हुआ,
घर बना मकान..
समय ने धार उल्टी बही,
सांस जाती रही...जाती रही,
सब कुछ, धुंधला-धुंधला,
बात, कुछ भी, समझ आती नहीं..
मन वैरागी हुआ जाता है,
पकड़ लूं, जकड़ लूं,
वो दूर भागना चाहता है,
वो दूर भागना चाहता है,
तुम थीं... नहीं...हो
वो जानता है, मैं मानता हूँ
बस! और नहीं, थक गया हूँ,
व्यर्थ - यह उलझन, सुलझाना चाहता हूँ..
यह क्या...किसका प्रतिबिम्ब दिखा?
यह क्या...किसका प्रतिबिम्ब दिखा?
अंतरात्मा...अहा! उत्तर मिला!
अहम्, ज्ञान, बुद्धि, व्यव्हार,
प्रेम, पराक्रम, धैर्य, आचार,
दो जीव, हम दोनों, भिन्न दृष्टि और चार,
जान लें, मान लें, जीवन का सरल सार!
Sorry for that last comment ..... I must have misread it
ReplyDeleteBut do gimme a reason for that sadness ..... Why did the poets fancy take him there? The person I know behind that poet is one helluva jovial person ........
Hey but you did make amends of some sorts with that last stanza
Hey! Thanks for your comment...just reformated the last one in terms of line spacing. Well, a poet is an observer of life, right!
ReplyDeleteEk taraf yaari dosti ki batein likhte ho, or doosri taraf yeh tanhayion wali nazm... janab hum aapke saath hai... hum sada hai "Hum or Tum"!!! bahut badiya chote bhaiya!!!!
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