कल जो कभी आज था, आज वह कल, नहीं है,
आज जो आज आज है, कल वह कल होगा, यकीन है,
इस ही कल-आज-आज-कल के होने ना होने में,
जीवन भी बेबस, यहीं कहीं है!
काल का चक्र बिना रुके, आगे बढ़ता जाता है,
चल! नहीं तो कल-कल कर हर पल जल सा बह जाता है,
वर्तमान ही सत्य है, भूत-भविष्य की साख ही क्या?
क्षणभंगुर यह क्षण, क्षण में काल-विलीन हो जाता है!
प्रतिदिन, नया दिन, प्रथम भी अंतिम भी है,
यही सिद्धांत बने आधार, बुद्धि, पराक्रम सर्वोपरि हैं ,
प्रत्येक पृष्ठ सजे नयी व्याकरण, नया विचार,
जीवनी ऐसी तराश, सांचा जिसका कहीं नहीं है!
- फ़नकार
आज जो आज आज है, कल वह कल होगा, यकीन है,
इस ही कल-आज-आज-कल के होने ना होने में,
जीवन भी बेबस, यहीं कहीं है!
काल का चक्र बिना रुके, आगे बढ़ता जाता है,
चल! नहीं तो कल-कल कर हर पल जल सा बह जाता है,
वर्तमान ही सत्य है, भूत-भविष्य की साख ही क्या?
क्षणभंगुर यह क्षण, क्षण में काल-विलीन हो जाता है!
प्रतिदिन, नया दिन, प्रथम भी अंतिम भी है,
यही सिद्धांत बने आधार, बुद्धि, पराक्रम सर्वोपरि हैं ,
प्रत्येक पृष्ठ सजे नयी व्याकरण, नया विचार,
जीवनी ऐसी तराश, सांचा जिसका कहीं नहीं है!
- फ़नकार