आमद की आहट सुनाई देने लगी है,
सर्द जाड़ों की बर्फ कुछ पिघलने लगी है,
वगरना इस ही गुमान में जिए जा रहे थे,
न होगा कुछ, सब तर्क किये जा रहे थे,
जैसे बुना गया था वो तिलिस्मी ग़ालीचा,
बयाबान सा दिल मेरा बना है बाग़ीचा,
फ़ितरत के सिलसिले भला सँभलते हैं कहाँ,
वगरना इस ही गुमान में जिए जा रहे थे,
न होगा कुछ, सब तर्क किये जा रहे थे,
जैसे बुना गया था वो तिलिस्मी ग़ालीचा,
बयाबान सा दिल मेरा बना है बाग़ीचा,
फ़ितरत के सिलसिले भला सँभलते हैं कहाँ,
इस ही हसरत में फिरे यहाँ वहाँ,
की आपसे मुलाक़ात हो, आपका इस्तक़बाल करें,
महसूस करें आपको, आपसे प्यार करें,की आपसे मुलाक़ात हो, आपका इस्तक़बाल करें,
वक़्त ने बहुत वक़्त लगाया, आख़िर इजाज़त दी है,
देर से ही सही रूह को, आख़िर राहत मिली है।
Wow Brother... Keep it up
ReplyDeleteNice
ReplyDelete