Dec 4, 2011

ख़्वाब

ख़्वाब...ये ख़्वाब बहुत अजीब होते हैं,
यादों की रूह, ये हसरतों को श़क्ल देते हैं,
इन ख़्वाबों पर मेरा कोई बस नहीं, कब किस रूप में आ जाएं,
यही उम्मीद रहती है, इस बार आयें, तो वापस न जाएँ!

रातों में नटखट बालक के जैसे, बिन आहट आ जाते हैं,

नए-पुराने, जाने-पहचाने, हर रंग के मंज़र दिखाते हैं,
कभी यहाँ, कभी वहाँ, जाने कहाँ-कहाँ की सैर कराएं,
कभी इनसे, कभी उनसे मिलाएं, ज़िन्दगी निभाने के गुर सिखाएं!

ज़िन्दगी की तरह, ख़्वाबों की भी, अपनी ही तासीर होती है,

ख़ुश्क, लबरेज़, पूरे, अधूरे, इनकी अपनी ही उम्र होती है,
इनका न कोई मापदंड, न कोई दायरा होता है,
ख़्वाब, ख़ुदी का अक्स, मन का आईना होते हैं!

फूट फूट के रोये हम, ठहाकों के साथ हँसे भी,

ख़्वाबों में बीते पल को जिया, आने वाले कल को देखा भी,
पानी के बुलबुले जैसे, इनका अपना ही मिज़ाज होता है,
एक पल बनते दिखते हैं, अचानक, कहीं खो से जाते हैं!

जब साथ होते हैं, लगता है यही अपने हैं,

जब ख़त्म, आप कहते हैं "छोड़ो, ये तो सपने हैं"!
है-था-होगा? मैं अंजान हूँ,
मेरी यादों-जज़्बातों की पहचान, मैं इनका शुक्रगुज़ार हूँ!