Jan 20, 2013

आज

कल जो कभी आज था, आज वह कल, नहीं है, 
आज जो आज आज है, कल वह कल होगा, यकीन है, 
इस ही कल-आज-आज-कल के होने ना होने में, 
जीवन भी बेबस, यहीं कहीं है!

काल का चक्र बिना रुके, आगे बढ़ता जाता है, 

चल! नहीं तो कल-कल कर हर पल जल सा बह जाता है,
वर्तमान ही सत्य है, भूत-भविष्य की साख ही क्या? 
क्षणभंगुर यह क्षण, क्षण में काल-विलीन हो जाता है!

प्रतिदिन, नया दिन, प्रथम भी अंतिम भी है, 

यही सिद्धांत बने  आधार, बुद्धि, पराक्रम सर्वोपरि हैं ,
प्रत्येक पृष्ठ सजे नयी व्याकरण, नया विचार,
जीवनी ऐसी तराश, सांचा जिसका कहीं नहीं है!

- फ़नकार 

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