Aug 19, 2013

रौशनदान


रौशन हुए जाते हैं हम से,
इमारतें , बंगले, यह कोठियों के कमरे,

शाही दरबार हुए, या सरकारी दफ्तर,
दुकान, मकान, बाज़ार या घर,

खिड़की, दरीचा, दरवाज़ा, झरोंखा,
मुख्तलिफ़...हमारा अंदाज़ अनोखा,

यारी हमारी हवाओं के साथ,
नए रंग पहने हम, पहरों के साथ,

दिखाते आसमाँ के अभिन्न रंग-रूप,
नील में डूबे बादल सफ़ेद, फुहार सी फैली पीली धूप,

लड़कपन का शोर, चिड़ियों की चहक,
तशरीफ़ लाते हैं भीतर, बाग़ीचे की महक,

बसते हैं हम दीवारों में ऐसे,
चँद्रबिंदु में बिंदु सजता है जैसे!

पत्तों से लदी टहनियों से टकराकर जब भी लौट जातीं हैं,
विचरने आती हैं परछइयां, जो पीछे रह जाती हैं,


- फ़नकार 

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